श्री गणेशाय नमः
गरिमा विद्या विहार सीनियर सेकेण्डरी स्कूल
एवं
श्री गरिमा विद्या मंदिर उ.मा.विद्यालय
सम्माननीय पालक,
सादर वन्दे!
अच्छे संस्कार किसी माॅल से नहीं, परिवार के माहौल से मिलते है।
कथन है कि अच्छे संस्कार की सीख एक जीवन भर चलने वाली पूॅंजी है, जो व्यक्ति को आजीवन काम आती है।
हम गरिमा ग्रुप इन्हीं विचारों को केन्द्र में रखकर निरंतर शिक्षा के साथ सुरक्षा और संस्कार देने के लिए प्रतिबद्ध है। हमारा प्रयास है कि विद्यालय का प्रत्येक विद्यार्थी सर्वगुण संपन्न हो यह प्रयास तभी सफल हो सकता है जब हमारे साथ आप भी इसमें सहयोग देवे। आज के लगातार बदलते परिवोश और वातावरण को देखते हुए हमें अपने बच्चों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
छोटे बच्चे एक कोमल पौधे की तरह है जिन्हें हम जैसे चाहे उनका पोषण कर बडा कर सकते है। ठीक वैसे ही जैसे सूर्य का प्रकाश एक छोटे पौधे को पोषण देकर उनका लालन पालन कर एक वटवृक्ष बना देता है। ऐसी शिक्षा हमें उनकी छोटी आयु से ही प्रारंभ करनी होगी। क्योंकि वे हमारी पूॅंजी है और संस्कारों से बढकर कोई पूॅंजी नहीं होती और ईमानदारी से बडी कोई विरासत नहीं होती।
बच्चों का यह प्राकृतिक स्वभाव होता है कि जो उनके बडे करते है वे वैसा ही अनुसरण करते हुए यह सोचते है कि यह घर की परंपरा होगी। यानि श्रेष्ठ पुरूष जैसा आचरण करेंगे वैसा ही बच्चे परंपरा मानते हुए करते चले जाएंगे। आज हमें षिक्षा के साथ उनमें संस्कार, शिष्टाचार, विनम्रता, क्षालीनता जैसे गुणों का अंकुर उत्पन्न करना अति आवष्यक है। विद्यालय में तो हम शिक्षा के साथ संस्कार के लिए व्यक्तित्व विकास (पी.डी) की कक्षा लगाकर उनके सर्वांगीण विकास की ओर ध्यान दे रहे है लेकिन उनके घर का माहौल कैसा है, वे किन दोस्तों के साथ रहते है, कोचिंग में पढने जाते समय वे किनका साथ करते है? इस बात की ओर ध्यान दिये जाने की अति आवश्यकता है। आज हर माता- पिता अपने बच्चों की हर ख्वाहिश और सुविधा देने के लिए लगातार परिश्रम कर रहे है और इस कारण से वे उन पर ध्यान देने से चूक जाने के कारण संस्कार देने से वंचित रह जाते है। विद्यार्थी अधिक महंगे मोबाईल का शोक पालते है न मिलने पर गलत गतिविधि मंे लगकर उसे पाने का प्रयास करते हैं गलत संगत के कारण वे नशा प्रवृत्ति की ओर भी अग्रसर हो जाते है और हमें इस बात की जानकारी भी नहीं होतीं। विद्यार्थी ’’सोच भले ही नयी रखे, पर उन्हें परंपरा व संस्कार परिवार के ही अपनाना चाहिए’’ जो कि व्यक्ति का आभूषण है और वही उन्हें समाज में आदर व सम्मान दिलाता है।
अनुशासन की षुरूआत प्रथम घर एवं पष्चात् विद्यालय से होती है। आज विद्यार्थी हेयर स्टाईल, नई फैषन की वेशभूषा, अनुशासनहीनता, व्यवहार में परिवर्तन, एक दूसरे विद्यार्थी से द्वेष करते है। शिक्षकों के समझाने पर उन्हें किसी प्रकार का सम्मान नहीं देते इसके पीछे कही न कहीं माता पिता का श्रेय शासन, प्रशासन, के नियम षिकायतों का डर विद्यालय एवं षिक्षकों के मन मंे घर कर जाता है और वे कठोर कार्यवाही करने में असमर्थ रहते है, जबकि पुरानी कहावत है ’’छडी पडे छम – छम, विद्या आए घम- घम’’ यानि शिक्षक की मार विद्यार्थी जीवन को चमकाने में अहम भूमिका निभाती है लेकिन नई षिक्षा नीति में इस पर विराम लगा दिया है यदि यह जीवंत होता तो काफी हद तक माता पिता को बच्चे के भविष्य की चिंता कम होती। छडी की मार, जो बच्चों के ज्ञान में निखार लाने का काम करती था, आॅंखों का डर, जो उन्हंे अनुशासित रखने में खास योगदान देता था, कानों का उमेठा जाना, जो उनके द्वारा की गई गलती का उन्हें तुरंत एहसास कराता था। वो सब अब किस्से कहानी बनकर रह गये है। माता पिता की अपेक्षा बच्चे शिक्षक से अधिक डरते है और उनका कहा मानते है यही उन्हें उनके सुनहरे भविष्य गढने मंे योगदान देता है।
आज बच्चों को उचित माहौल न मिलने के कारण वे सहमे से रहने लगे है। इसके लिए माता पिता को आगे आकर उन्हें संगीत, नृत्य और अन्य कलात्मक चीजों में अपना समय लगाने के लिए प्रोत्साहित करना होगा, परिवार में गु्रप डिस्कशन भी आवश्यक है इसके साथ ही उन्हें अपने परिवार के अन्य रिष्तेदारों से सलाह देनी चाहिए वरना हम भविष्य के साथ खिलवाड कर देष को सही पीढि देने में असमर्थ रहेंगे।
गुरू कुम्हार षिष्य कुंभ है गढि- गढि काढै खोट।
अंतर हाथ सहार दै बाहर बाहे चोट।।
अर्थात् – कबीरदास जी कहते है कि गुरू कुम्हार है और शिष्य मिट्टी के कच्चे घडे के समान है। गुरू भीतर से हाथ का सहारा देकर बाहर से चोट मारकर शिष्यों की बुराई को निकालते है। गुरू ही शिष्य के चरित्र का निर्माण करता है। गुरू के अभाव में शिष्य एक माटी का टुकडा ही होता है जिसे गुरू एक घडे का आकार देते है अर्थात् चरित्र का निर्माण करते है। कभी- कभी माता पिता और गुरू को इसके लिए सख्त कदम भी उठाने पडते है। वर्तमान् में बच्चों में न धैर्य है न शांत स्वभाव वे अभी से सबकुछ पाना चाहते है जबकि बुद्धि का विकास उम्र के साथ होता है। वह महंगा मोबाईल चाहता है महंगी गाडी बिना लाईसेंस के चलाना चाहता है यदि पालक यह जिद पूरी न करे तो वह नशा प्रवृत्ति, लडाई – झगडा, आॅनलाईन गेम, सोषल मीडिया का अधिक प्रयोग कर गलत संतग में लग जाता है। पालक को चाहिए कि हमेषा उनकी जिद को हाॅं करने के बदले कभी ना भी करना चाहिए।
हमें आज के बच्चों को भविष्य की चुनौतियों का सामना करने विषम परिस्थिितियों में जीने की कला स्वावलंबी कुलशासक, नेतृत्व की क्षमता का सामना करने योग्य बनाना होगा। इसके लिए उन्हें घर के छोटे मोटे कार्य बाजार का सामान लाना, अपने घर में छोटे भाई बहनों का आदर करना, बडे – बुजुर्गों का सम्मान करना, अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हर कठिनाई का सामना करने के लिए साथ ही सयंमित जीवन कैसे जिया जावे? ऐसी शिक्षा देने की अत्यंत आवष्यकता है।
’’काकः चेष्टा बको ध्यानं ष्वान निद्रा तथैव च। अल्पाहारी गृहत्यागी विद्यार्थी पंचलक्षणम् ।।
अर्थात्- एक विद्यार्थी में यह पाॅंच लक्षण होना चाहिए कौवे की तरह सर्तक रहना, बगुले की तरह ध्यान लगाना, कुत्ते की तरह सोना, कम खाना, घर से दूर रहना।
संस्कार
संस्कारों का है देश हमारा, उॅंचे संस्कार है शान, हमारा।
बडे बुजुर्गों की इज्जत है धर्म हमारा, उनकी सेवा है कर्म हमारा।
पुष्तों की देन है संस्कार हमारे, ये दिए नहीं है जाते
ये तो मिलते है परिवारों से न कि समाज के ठेकेदारों से।
ये न बिकती है बाजारों में न ही मिलती है किस्मत से
ये मिलते है अच्छे माॅं बाप से जो बांधते है हमें संस्कारों से।
नोट – सम्माननीय महोदय, ऐसा नहीं है कि उपरोक्त बातों पर आपका ध्यान नहीं है या हम आपको समझाने का प्रयास कर रहे है हम तो केवल याद दिलाने का प्रयास कर रहे है कि आप जागृत होकर विद्यालय के साथ हमारा भी सहयोग करें।
गरिमा ग्रुप
1) पालक बच्चों को स्कूल में शिक्षक द्वारा डांटने पीटने पर बुरा ना माने, ये बात समझे कि बच्चे की स्कूल में पिटाई और आचरण खराब होने पर पुलिस की पिटाई से कहीं अच्छी है।
2) विद्यालय में अनुशासन के लिए विद्यार्थियों के हेयर स्टाईल ओर उनकी चाल ढाल को लेकर शिक्षक कितनी भी सख्ती करे, किंतु उनके व्यवहार में कोई सुधार दिखाई नहीं देता। इसके पीछे भी कही न कहीं माता पिता का श्रेय नजर आता है और शिक्षक निराश होकर केवल देखते रह जाते है। इसके लिए माता पिता को इन बातों से अपना ध्यान हटाना होगा क्योंकि अनुशासन केवल बातों से नहीं आता बल्कि थोडा डर और सजा भी आवष्यक है किंतु माता पिता के भय शासन, प्रशासन के प्रति बनाए गए नियम से शिक्षक भी डरते है और वे कडा कदम उठाने में असमर्थ है। इसमें आपके सहयोग की आवश्यकता है।
3) वर्तमान समय में बच्चों को स्कूलों में डर नहीं है घर लौटने पर भी डर नहीं है इसलिए समाज आज भयभीत हो रहा है और वही बच्चे आज के समय में अपने आप को फ्री व समझदार समझते हुए गलत गतिविधियों में जैसे- मादक पदार्थो का सेवन, स्मोकिंग, अनावश्यक झगडे, लोगो पर हमले के आदि होते जा रहे है। इससे कई लोग अपनी जान गंवा देते है और जान लेने वाले पुलिस के हाथ लगकर अदालत में सजा पाते है।
4) गुरू का सम्मान न करने वाला समाज नष्ट हो जाता है यह सत्य है आज गुरू का विद्यार्थियों में न भय है और न ही सम्मान। ऐसे में पढाई और संस्कार कैसे आएंगे? इसके पीछे बहुत कुछ माता पिता का अपने बच्चों के प्रति लगाव और शासन प्रशासन द्वारा बनाए गए नियम दोषी है। मत मारो मत डाटो ऐसी पालक की मंषा होने पर शिक्षक भयभीत रहते है और समाज भी उन्हें ही दोषी ठहराता है। कुछ माता पिता तो यहाॅं तक कहते है कि ’’हमारा बच्चा न भी पढे तो भी कोई बात नहीं लेकिन उसे डाटना नहीं मारना नहीं और इसके पष्चात् विद्यालय को ही दोष देते है कि पढाई नहीं हो रही है।
5) कई विद्यार्थी पढाई का सामान किताब, काॅपी पेन नहीं लाते फिर वे शिक्षा कैसे प्राप्त् कर सकते है। बिना अनुशासन के शिक्षा का कोई परिणाम नहीं क्योंकि बच्चों का व्यवहार बदलता जा रहा है।
6) विद्यालय में गलती करने विद्यालय की वस्तुओं को नुकसान पहुॅंचाने पर सजा नहीं दी जा सकती, डांटा नहीं जा सकता, यहाॅं तक कि गंभीरता से समझाया भी नहीं जा सकता। ऐसा इसलिए है कि माता पिता भी चाहते है कि सबकुछ दोस्ताना माहौल में कहा जाए क्या यह संभव है? क्या समाज भी ऐसा करता है? पहली गलती करने पर क्षमा करता है। शिक्षकों के अधिकार नहीं बचे है। यदि वह बच्चे को सुधारने की कोशिश करे तो वह अपराधी कहा जाता है लेकिन वह बच्चा गलती करे तो उसे बडा होने पर उस गलती होने पर उसे कानूनन सजा का सामना करना पड सकता है।
7) बच्चों के व्यवहार उनमे संस्कार एवं शिष्टाचार देने में शिक्षक की मुख्य भूमिका होती है। कुछ शिक्षकों की गलती के कारण सभी शिक्षकों का अपमान न करें क्योंकि 90 प्रतिशत शिक्षक केवल बच्चों के सर्वांगीण विकास की कामना करते है यह सत्य है इसलिए हर छोटी गलती के लिए शिक्षकों पर आरोप लगाना या विद्यालय को गलत समझना हमें छोडना होगा। जब हम पढते है तब भी हमारे शिक्षक हमे मारते थे लेकिन हमारे माता पिता विद्यालय आकर शिक्षकों से सवाल नहीं करते थे क्योकि वे हमारे कल्याण पर ही ध्यान देते थे और वे गुरू के महत्व को समझते थे।
9) बच्चों के भविष्य के बारे में एक बार जरूर सोचें क्योंकि उनकी बर्बादी के 60 प्रतिषत कारण गलत संगत, मोबाईल और मीडिया है। लेकिन 40 प्रतिषत का कारण माता पिता का अत्यधिक प्रेम अज्ञानता और अंधविश्वास बच्चों को नुकसान पहुंचा रहा है।
10) आज के 70 प्रतिशत बच्चे माता पिता का कहा नहीं मानते यदि माता पिता कोई काम बताए या अपनी बाईक साफ करने को कहे तो नहीं करते और बिना कारण ही महंगे मोबाईल महंगी बाईक और महंगी चीजे खरीदने की जिद करते है और माता पिता के न मानने पर अनावश्यकता कदम उठाने की धमकी देते है। यह माता पिता की मजबूरी है।
11) आज विद्यार्थी बाजार से सामान लाने को तैयार नहीं होते और आॅनलाईन मंगवा लेते है ऐसे में उन्हें खरीददारी की अनुभव नहीं होता वे अपनी शैक्षणिक सामग्री नियत स्थान पर नहीं रखते, घर के कामों में हाथ न बटाते हुए टीवी व मोबाईल पर कुछ देखते रहते है, देर रात तक जागते है जिससे उनमें सुबह जल्दी उठने की आदत नहीं होती, माता पिता को पलटकर जवाब देते है, पैसे लेकर अपने दोस्तों पर खर्च करने को अपना बडप्पन समझते है नाबालिग बाईक चलाकर दुर्घटना का शिकार होते है और केस में फंस जाते है, लडकियाॅं माॅं के दैनिक कार्यों में मदद करने की बजाय मोबाईल फोन का इस्तेमाल करने में समझदारी समझती है, अनावश्यक रिल बनाकर अपनी जान तक जोखिम मे डाल देेते है, मेहमानों को एक गिलास पानी लाने मे उन्हें परेशानी होती है, लडकियों को खाना बनाना तक नहीं आता वे आगे चलकर ससुराल मे परेशानी का कारण बनता है, आज सभी फैशन ट्रेंड और तकनीकी के पीछे भागकर भारतीय संस्कृति के परिधानों तक को भूल गये है।
इन सबका कारण हम ही है हमारा गर्व प्रतिष्ठा और प्रभाव बच्चों को जीवन के पाठ पढाने असमर्थ है। कष्ट का अनुभव न करने वाला व्यक्ति जीवन के मूल्यों को नहीं समझ सकता। आज के युवा 10- 15 साल की उम्र में ही प्रेम कहानियों मोबाईल, ध्रुमपान,षराब, जुआ, ड्रग्स और अपराध में लिप्त होते जा रहे है और आलसी बनकर जीवन का लक्ष्य खोते जा रहे है। बच्चों का जीवन सुरक्षित रखना विद्यालय के साथ हमारी भी जिम्मेदारी है यदि हम अब भी सर्तक नहीं हुए तो आने वाली पीढी बर्बाद हो जावेगी और बच्चो का भविष्य अंधकारमय हो जावेगा क्योंकि शिक्षक दया कर सकते है मगर पुलिस की ठुकाई पिटाई बाद में कोर्ट कचहरी तक पैसे खर्च होते है शिक्षक की डांट फटकार पर कोई पैसा खर्च नहीं होता। माता पिता के बाद शिक्षक ही है तो छात्रों को सही मार्ग दिखाते है और बुद्धिमता की ओर ले जाते है इसलिए सदैव गुरू का सम्मान करे।
समय प्रबंधन सफलता की कुंजी है ब्रह्म मुहुर्त मे उठकर जो अपनी दिनचर्या को समय प्रबंधन के साथ प्रारंभ करते है वे कभी अपने इरादों को भाग्य के पन्ने पर कोरे नहीं छोडते ऐस विद्यार्थी जीवन की परीक्षा मे हमेशा अव्वल अंकों से उत्तीर्ण होते है। सफलता केवल भाग्य में निर्भर नहीं होती बल्कि निरंतर प्रयास और सही दिशा में किये गये कर्मो से प्राप्त होती है। जब व्यक्ति अपने कार्यो में निष्ठा ईमानदारी और समर्पण के साथ जूटता है तो उसे जीवन में सफलता की कोई किल्लत नहीं होेती। समय का सही उपयोग और ईश्वर के प्रति आस्था उसे हर कार्य में उत्कृष्टता प्रदान करती है ऐसे लोग अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कठिनाईयों का सामना करते हुए भी कभी हार नहीं मानते क्योंकि उनका विश्वास उनके कर्माें में होता है।
ब्रह्म मुहुर्त में उठकर माता पिता और ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त करना और अपने कर्म में ध्यान देना सफलता की कुंजी है। समय प्रबंधन के साथ कार्य करने से जीवन में सफलता प्राप्त होती है। अपने इरादों को सशक्त रखना और भाग्य पर निर्भर न रहकर निरंतर प्रयास और सही दिशा में कर्म को प्राथमिकता देना ही सफलता है। इसमें निष्ठा, ईमानदारी, समर्पण से काम करना कठिनाईयो के बावजूद सफलता की ओर मार्ग प्रशस्त करता है और इन सबके लिए अपने आप में विश्वास का होना अति अनिवार्य है।